
मानसिक दूरसंचार (Telepathy) –
मानसिक दूरसंचार (Telepathy) को हम कुछ इस तरह समझ सकते है कि हमने अपने मन में विचार किया हो कि हमारा खास दोस्त हमें फ़ोन करने वाला है और ठीक उसके कुछ देर बाद ही उसका फोन आ जाता है या कभी हमारे पास कोई व्यक्ति आने वाला हो और हमें थोड़ी देर पहले ही उसके आने का आभास होने लगता है। कुछ इसी तरह की बातों का हम में से हर एक ने कभी ना कभी कहीं ना कहीं अनुभव जरूर किया होगा या अक्सर लोग अपनी जिंदगी में इस तरह का अनुभव ज़रूर करते हैं।
ऊपर दिए गए उदाहरण हमारे दैनिक जीवन में टेलीपैथी द्वारा घटने वाली घटना एवं सबसे ज्यादा होने वाले आभास है। असल में टेलीपैथी में हमारा शरीर काम नहीं करता अपितु मूल रूप से हमारा मन और उसका अवचेतन हिस्सा ही कार्य करता है। इसलिए टेलीपैथी का अभ्यास करते समय ये आवश्यक है कि हम अपने मन को शांत और शरीर को शिथिल कर लें या इन पर लगभग पूर्ण नियंत्रण रखे।
अब हम टेलीपैथी को आसानी से समझने के लिए इसे तीन भागों या तीन चरणों में बांट लेते हैं एवं फिर बारी बारी से इनके बारे में समझने का प्रयास करते है।
- इसके होने का कारण या ये प्रक्रिया किस प्रकार की जाती है ?
- स्वयं की ऊर्जा से इसे कैसे करें ?
- टेलीपैथी के लिए सही विचारों का चुनाव एवं उनका तरीका क्या होना चाहिए ?
टेलीपैथी को समझने के लिए सबसे पहले हम मानवीय विचारों के स्थानान्तरण की प्रक्रिया (Human Thought Transfer Process) को समझते हैं।
हमारा शरीर मानसिक तरंगों को ग्रहण कर सकता है जी हां यह संभव है। दूसरे व्यक्ति से आने वाली मानसिक तरंगों को हमारा अवचेतन मन ग्रहण करता है एवं यह प्रक्रिया बड़ी ही संवेदनशील है इसलिए हमें मन की स्थिति को नियंत्रित (Control) करना पड़ता है। तभी हमारा शरीर ब्रह्मांड से आने वाली तरंगों या सिगनल्स को ग्रहण (Receive) करने लगता है अगर आप अपने मन को कंट्रोल कर सकते हैं और मनचाहे आदेश उसमें डाल सकते हैं तो आप टेलीपैथी का अभ्यास बिल्कुल आसानी से कहीं पर भी कर सकते हैं।
टेलीपैथी में हम अपने विचारों (Thoughts) को विधुतीय तरंगों (Electric Signals) के रूप में स्थानांतरित करते है। हमारा मस्तिष्क इस कार्य को प्रभावी (Effective) रूप से तभी कर सकता है जब हमारा मन शांत हो और उस स्थिति में यह आसपास स्थापित तरंगों को महसूस करने लगता है इसलिए जब भी टेलीपैथी का अभ्यास करने जा रहे हो तब निश्चित करलें कि मन-मस्तिष्क विचार शुन्य हो।
टेलीपैथी का अभ्यास करने से पहले अपने मन को भी आवश्यक रूप से विचार शुन्य ज़रूर कर लें। टेलीपैथी में हमारे भौतिक शरीर का प्रत्यक्ष रूप से कोई योगदान नहीं है क्योंकी आप इसे भौतिक रूप से समझ ही नहीं सकते है अतः इसे समझने एवं समझाने के लिए मन के विचारों की आदान प्रदान की प्रक्रिया को समझे।
जिसमे हम बिना किसी भौतिक माध्यम के एक-दूसरे से मानसिक रूप से जुड़ते है। और एक बात, मन की शक्ति अनन्त है इसे जितना ज्यादा महत्त्व देंगे उसे उतना ही जाग्रत रख पाएंगे। आप घर पर आसानी से बिना किसी ज्यादा परेशानी के ये अभ्यास कर सकते है। इसके लिए आपको सबसे महत्वपूर्ण ध्यान देने वाली बातों को समझना होगा और उनका पालन करते हुए आगे बढ़ना होगा।
चलिए जानते है घर पर टेलीपैथी का अभ्यास करने के लिए आपको क्या करना होगा –
टेलीपैथी में दो बातें विशेष रूप से ध्यान रखे, पहली आपके विचार साफ और स्वाभाविक (Spontaneous) एवं लगातार होने चाहिए और दूसरी आपकी भावना शक्ति कमजोर नहीं पड़नी चाहिए।
- पहला चरण –
टेलीपैथी के अभ्यास के पहले चरण में आपको अपने अपने भौतिक शारीर को शिथिल करने की जरुरत है. जिसके लिए आपको एकांत चाहिए और एक मधुर मनोरम बिलकुल मंद संगीत होना चाहिए जिसकी मदद से आप विचारों को शुन्य कर सके। इसके अलावा आपकी एकाग्रता और भावना शक्ति मजबूत होनी चाहिए। ये आपके द्वारा भेजी जाने वाली विधुतीय तरंगों (Electric Signals) को बढ़ा देता है।
- दूसरा चरण –
टेलीपैथी का दूसरा चरण आपके प्राण शक्ति पर कार्य करता है इसके अनुसार आपकी प्राण शक्ति को अगर शरीर से भावना शक्ति द्वारा मुक्त (Unblock) कर दिया जाये एवं एक ही जगह पर या एक ही बिंदु पर ध्यानकेन्द्रितकर (Concentrate) कर उसे विचारों के साथ भेज दिया जाये तो ये सबसे ज्यादा प्रभावशाली तरीका होगा आपके दूसरों से जुड़ने का ।
दूसरे शब्दों में ये बिलकुल सूक्ष्म शरीर (Astral Body) की तरह होगा । शांत माहौल के कमरे में अपने मस्तिष्क को शिथिल कर ले ये अभ्यास चाहे लेट कर कर ले या बैठ कर दोनों ही स्थिति में आपके मस्तिष्क को विचारशून्य और भौतिक शरीर को शिथिल करना होता है।
अपने आपको विचारशून्य बना लेने के बाद जब हम प्राण शक्ति को एक जगह केन्द्रित कर लेते है तो हमारी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है जिससे हमारी विचार शक्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त होने लगती है और हम मानसिक रूप से एक दुसरे से जुड़ने लगते है।
इसी वक़्त अगर हम उस व्यक्ति से जुड़े जो कि इसी समय हमारी ही तरह की स्तिथि में हो यानि उसका लौकिक स्तर (Cosmic Level) बढ़ा हुआ हो तो टेलीपैथी ज्यादा बेहरत तरीके से होने लगती है। इसी प्रकार से हम किसी से भी टेलीपैथी द्वारा जुड़ सकते है।
लेकिन यह ध्यान में रखे की हमें सिर्फ उस व्यक्ति का ही विचार करना होगा या उसी पर अपना ध्यम केन्द्रित करना होगा। ये कार्य तब ज्यादा अच्छे तरीके से होता है जब आप अभ्यास रात के 11 बजे के बाद करते है क्योंकी इस वक़्त वो सो चुका होगा या फिर उसकी भौतिक गतिविधि मंद पड़ चुकी होगी या फिर वह व्यक्ति भी बिलकुल इसी समय हमारी तरह ही हमारी ध्यान मुद्रा में हो।
आप चाहे तो भावना शक्ति से एक ही सन्देश बार-बार दे कर उसे अपने विधुतीय संकेत (Electric Signal) भेज सकते है। आपके विचारों की तीव्रता आपके ध्यान केन्द्रीकरण की स्तिथि का पर निर्भर करता है।
- तीसरा चरण –
टेलीपैथी के तीसरे चरण में पहुँचने से पहले आपको ऊपर के दोनो चरण के अनुसार शरीर को शिथिल कर अवचेतन मानसिक स्तर पर पहुँचना होगा। यहाँ आपको पता होता है की आप की शक्तियां क्या है। अपनी शक्ति को पहचान कर उसे सही दिशा देने से आप मानसिक यात्रा का अनुभव कर सकते है।
जब भी आप विचार सम्प्रेषण (Communication of thoughts) कर रहे होते है तो आपकी भावना शक्ति उस विचार को ज्यादा से ज्यादा दूरी तक भेज सके इसका भी ध्यान रखे जितनी ज्यादा आपकी इच्छा शक्ति मज़बूत होगी आप विचारों को उतना ही दूर भेज पाएंगे। कोशिश करें कि उस वक़्त आपके ऊपर मानसिक दबाव न बन पाए।
एक विचार सोच ले, जो आपको सामने वाले के पास भेजना है। याद रखे ये विचार छोटा एवं बिलकुल स्पष्ट हो अन्यथा आपको भेजने में समस्या होगी और प्राप्तकर्ता (Receiver) सामने वाला भी उसे स्पष्ट रूप से प्राप्त नहीं कर पाएगा।
टेलीपैथी के अभ्यास के बाद योगनिद्रा (Yog Nidra) जरूर ले ये आपकी थकान मिटा देती है और आपके ऊपर जो मानसिक दबाव बनता है। उसे कम करती है।

ततपश्चात पिरामिड अवस्था भी इसके अलावा आपकी प्राणशक्ति को ज्यादा से ज्यादा संचय (Accumulation) का कार्य करती है। अतः प्राणशक्ति को बढ़ाने के लिए ध्यान की “पिरामिड ध्यान अवस्था” (Pyramid Meditation Position) करना सबसे उत्तम है।

पिरामिड ध्यान अवस्था
टेलिपेथी मानव मस्तिष्क और मन की रचना का एक विज्ञान है। इसका अगर सही इस्तेमाल अभ्यास द्वारा किया जाये तो हम प्रकृति के कई रहस्य उजागर कर सकते है। क्योंकी मानव मन अनलॉक (Unlock) होते ही आप साधारण से एक विशेष एवं आपकी मन की शक्तिया असीमित हो जाती है। जरुरत है तो बस धैर्य के साथ नियमित अभ्यास की।
वैसे तो मानसिक दूरसंचार अपने आप में एक विषय है किन्तु फिर भी मैंने Telepathy के मूल अर्थ और इसके किये जाने वाले अभ्यास को कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा आसान और प्रभावी रूप से आपको समझाने और बताने का प्रयास किया है। आपको ये लेख कैसा लगा अपने अमूल्य विचार मुझे कमेन्ट करके अवश्य बताइयेगा। आपके सुझावो का सदैव स्वागत है।
What a great knowledge shared Sir,
Thanks